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हिंदी कहानियां - भाग 204

विद्या का उपहार


विद्या का उपहार दरवाजे  के पीछे से कोई झांक रहा था। रजत ने अंग्रेजी का पाठ याद करते हुए मुंह उठाया, तो देखा बिट्टो उसे निहार रही थी। मोटा-मोटा काजल, गले में देवी का लॉकेट और बड़ी सी बदरंगी फ्रॉक, लेकिन आंखों में जानने की इच्छा। बिट्टो, रजत के घर में बरतन धोने वाली बाई राधा की बेटी थी, जो रोज अपनी मां के साथ घर आती थी।  रजत के द्वारा उसका नाम पुकारने पर बिट्टो छिप गई, पर थोड़ी देर बाद गरदन निकालकर फिर रजत को देखने लगी। रजत ने उसे टॉफी दी, तो वह सहमी हुई मुसकराहट के साथ बोली, “भैया! तुम स्कूल में पढ़ते हो?”  रजत के पूछने पर बिट्टो ने बताया कि वह भी सरकारी स्कूल में जाती थी, पर घर पर उसे पढ़ाई में मदद करने वाला कोई नहीं था और वह फेल हो गई। रजत ने उसकी हिम्मत बढ़ाते हुए कहा कि परीक्षा खत्म होने पर वह उसको पढ़ाएगा। यह सुनते ही बिट्टो का चेहरा खिल उठा। रजत ने अपनी पुरानी कॉपियों से खाली छूटे पेजों का एक फोल्डर बनाया। वह रोज शाम को 15 से 20 मिनट तक बिट्टो की पढ़ाई में मदद करता। शनिवार-रविवार को वह लगभग एक घंटा समय निकाल लेता। वह जो काम बिट्टो को करने को देता, वह उसे बड़ी लगन से अगले ही दिन कर लाती। रजत के कहने पर बिट्टो की मम्मी ने उसे फिर स्कूल भेजना शुरू कर दिया और अगली परीक्षा में बिट्टो 50 प्रतिशत नंबरों से पास हो गई। अपना रिपोर्ट कार्ड लेकर जब वह रजत के पास आई, तो उसकी आंखों में खुशी के आंसू थे।  रजत का मेडिकल में चयन हो गया और डॉक्टरी पढ़ने हॉस्टल चला गया। पर रजत की सहायता से बिट्टो का आत्म विश्वास बढ़ गया। असफलता की सीढ़ी पार कर अब उसे पढ़ने की लगन लग गई।  आज भारती यानी बिट्टो स्कूल में टीचर है। वह क्लास के बाद रुककर उन बच्चों की मदद करती है, जो पढ़ाई में थोड़े कमजोर हैं। वह अपने ‘डॉक्टर भैया’ को राखी भेजना नहीं भूलती, जिनकी वजह से वह जीवन में अपने सपने को पूरा कर पाई और बहुत से बच्चों को पढ़ा रही है।

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